Wednesday, October 24, 2007

अमरीका करे तो अपमान, रूस करे तो सम्‍मान

अमरीका करे तो अपमान, रूस करे तो सम्‍मान

- अम्बा चरण वशिष्ठ

क्या ऐसा होता है कि यदि मेरी गाल पर मेरा एक मित्र तमाचा लगा दे तब तो मेरा गाल लाल हो जाये और वह मेरा अपमान बन जाये और यह दुर्व्यवहार मेंरा कोई दूसरा मित्र कर दे तो वह तमाचा ऐसा लगे मानो उसने बड़े प्यार से मेरे गाल पर एक फूल सहलाया है? लगता है हमारी संप्रग सरकार हमें कुछ ऐसा ही संकेत दे रही है।
यह तो सर्वविदित है कि कोई भी मन्त्री सरकारी यात्रा जब करता है तो महमान देश के निमन्त्रण पर करता है तथा उसका उस देश में सारा कार्यक्रम उस देश की सरकार के साथ तालमेंल से बनता है। अनेक बार ऐसा होता है कि पूर्वनिश्चित कार्यक्रम के बावजूद कई बार अतिथि या मेहमान देश में ऐसी घटना घट जाती है या कोई आपात्कालीत स्थिति पैदा हो जाती है कि वह यात्रा सम्भव नहीं रहती या किसी भी पक्ष को किसी प्रकार असुविधाजनक बन जाती है, तो ऐसी स्थिति में आपसी वार्तालाप से उस यात्रा कार्यक्रम को आगे-पीछे टाल दिया जाता है या फिर कार्यक्रम रदद कर दिया जाता है।
दस दिन भारत के विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी हमारे एक महान् मित्र देश रूस की सरकारी यात्रा पर गये थे। सब कुछ दोनों देशों के पारस्परिक तालमेल से तय हुआ था। पर इस बार अजीब हुआ। वहां पहुंचने पर रूस के विदेश मन्त्री ने प्रणब मुखर्जी से भेंट करने का समय ही नहीं दिया क्योंकि वह अमरीकी विदेश मन्त्री सुश्री कौण्डीला राइस के साथ अधिक व्यस्त थे। यह तो समझ पाना कठिन है कि रूस के विदेश मन्त्री अमरीकी विदेश मन्त्री के साथ इतने अधिक व्यस्त थे कि श्री मुखर्जी जितने दिन वहां रूस में रहे वह उनके लिये औपचारिक रूम से मिलने केलिये एक मिनट का समय भी न निकाल पाये जबकि भारत के विदेश मन्त्री का कार्यक्रम रूस सरकार की सहमति और सुवधिानुसार पूर्वनिर्धारित था। भारत के विदेश मन्त्री को लाचार हो कर अपना मन मसोस कर अपने मित्र देश के विदेश मन्त्री से बिना मिले ही लौटना पड़ा।
यही नहीं सरकारी दौरे पर आये श्री मुखर्जी की शारीरिक तलाशी भी ली गई।
इस में कोई सन्देह नहीं कि रूस हमारा अभिन्न मित्र है। उससे हमारे बहुत पुराने मैत्री सम्बन्ध हैं। पर मित्र को तो मित्र की तरह ही व्यवहार करना होता है। उसे तो अपने मित्र की भावबनाओं का इतना आदर करना होता है कि कहीं जाने-अनजाने में भी कोई ऐसी भूल या बात न हो जाये कि किसी प्रकार से अनायास ही कोई ग़लतफहमी पैदा हो जाये। पर यहां तो ऐसे व्यवहार किया गया मानों रूस को हमारी परवाह ही नहीं और वह समझता है कि हमारा अपमान कर भी वह हमारे पर एहसान ही कर रहा है। अभी तक कोई ऐसी सूचना नहीं है कि भारत सरकार ने राजनयक तौर पर किसी प्रकार का रोष ही प्रकट किया हो और रूस सरकार ने इस व्यवहार पर खेद।
यह श्री प्रणव मुखर्जी नहीं भारत के विदेश मन्त्री रूस सरकार के निमन्त्रण पर सरकारी दौरे पर थे और उनके साथ पूरी शिष्टता और सम्मान से व्यवहार होना चाहिये था। जो व्यवहार व बर्ताव उनके साथ किया गया वह व्यक्तिगत नहीं पूरे देश के साथ किया गया दुव्यवहार है। यह श्री प्रणव मुखर्जी का नहीं समूचे भारत राष्ट्र का अपमान है।
राजनयिक व कूटनितिक सम्बन्ध पारस्परिक व सामान आधार पर होते हैं। इस आधार पर तो स्पष्ट है कि हमें भी भविष्य में रूस के साथ वही बर्ताव व व्यवहार करना चाहिये जो वह हमारे राजनयकों, राजनीतिज्ञों व सरकारी अफसरों व मन्त्रियों से कर रहा हैं। यदि वर्तमान सरकार ऐसा नहीं करती तो वह अपनी हीन भावना का ही प्रदर्शन कर रही है। राष्ट्र का अपमान किसी को भी किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करना चाहिये चाहे वह हमारा मित्र हो या दुश्मन।
वास्तव में संप्रग सरकार अपने सत्ता लोभ से इतनी ग्रसित है कि वह रूस द्वारा किये गये अपमान को ढकने की कोशिश कर रही है केवल इसलिये कि वामपंथी जिनकी कृपा और समर्थन पर वह टिकी है, कहीं नाराज़ न हो जायें। और सब को तो पता ही है कि हमारे वामपथियों के लिये तो चीन-रूस जो कुछ भी करें वह ठीक और अमरीका जो कुछ भी करे वह गलत है।
यह स्मरण योग्य है कि जब कुछ वर्ष पूर्व तत्कालीन रक्षा मन्त्री श्री जार्ज फर्नाडीस की अमरीका में तलाशी ली गई थी और उनसे कपड़े भी उतारने को कहा गया था तो हमारे कांग्रेसी और वामपन्थी भाइयों ने बड़ा शोर मचाया था और अमरीका से कड़ा विरोध करने को कहा था। पर अब जब कांग्रेस के ही मन्त्री का रूस में घोर अपमान किया गया तो यही कांग्रेस उसे मीठा घूंट मान कर स्वाद से पी रही है। यह तो घोर पाखण्ड है कि यदि यही व्यवहार अमरीका करें तो वह राष्ट्र को घोर अपमान बन जाये और यदि रूस करे तो सम्मान। ‘’’

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